wooden toys made in banaras
wooden toys made in banaras:काष्ठ कला ने दुनिया में बनारस को एक अलग पहचान दी है जी आई ( ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) टैग मिलने के बाद लकड़ी के कारोबार में 30% की बढ़ोतरी हुई है वाराणसी के कश्मीरी गंज, खोजवा इलाके लकड़ी के खिलौने के खास अड्डे हैं यहां कारीगर बेजान लकड़ी को तराश कर खूबसूरत शक्ल में ढालते हैं जो देश-विदेश में बहुत लोकप्रिय हैं बेजान लकड़ी को तराश कर मूर्ति रूप देने वाले कारीगर विजय कुमार जिनकी आयु 58 वर्ष है यह हुनर अपने पूर्वजों से मिला है और वह अपने पूर्वजों की तीसरी पीढ़ी से हैं जो इस हुनर मे पारंगत है|
लेकिन इस निपुणता के बाद भी विजय जैसे होनहार लोगों के व्यवसाय पर संकट के बादल मंडरा रहे थे जो अब छट गए हैं पहले जिन लकड़ी के बने सामानों को इन कारीगरों को बनारस में ही बेचना पड़ता था उनके कारोबार को बढ़ावा मिला है अब ज्यादातर देश-विदेश से लकड़ी के खिलौने बनाने के आर्डर आते हैं जिससे पीढ़ियों से चल रहा इनका कारोबार काफी फल फूल रहा है|
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त रामेश्वर सिंह कारोबारी बताते हैं की गरीब गुरबा आबादी की रोजी-रोटी का सबसे बड़ा जरिया है कुटीर उद्योग लेकिन इसकी दशा 5 वर्ष पहले तक बेहद खराब रही कच्चा माल खरीदने के संकट के साथ-साथ बाजार भी बिचौलियों के हवाले होता था और इन्हीं परिस्थितियों से जूझकर इन कुटीर श्रेणी के उद्योगों से जुड़े लोगों ने पुश्तैनी और अपने पारंगत काम छोड़ दूसरे काम की ओर पलायन करने का निश्चय किया मगर जी आई का भरोसा मिलने के बाद उद्योग को पंख लग गए कारोबार का ग्राफ 30% तक बढ़ गया अब ऑनलाइन माध्यम से विदेश से हमारे पास मांग आती है जो हम लोगों और इस उद्योग के लिए काफी अच्छा है|
इंटरनेट से जुड़कर उद्योग को पंख लग गए हैं और इस संचार क्रांति ने बनारस के डूबते हुए व्यवसाय को आक्सीजन देने का काम किया है बाजार में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हुए काष्ठ खिलौना उद्योग को अब नया जीवन मिल गया है और इस नए जीवन के लिए संजीवनी का काम करने वाला इंटरनेट है बाजार के लिए तरस रहे बनारस के खिलौने ने अब इंटरनेट के माध्यम से दुनिया में रंग जमाना शुरू कर दिया है थोक कारोबारी के आर्डर पर काम करने वाले इस कला से जुड़े लोगों की उंगलियां अब कंप्यूटर बोर्ड पर तेजी से चल रही हैं इंटरनेट के जरिए अपने उत्पाद को यह दुनिया के सामने प्रदर्शित कर कारोबार को नया आयाम दे रहे हैं
गौर करने वाली बात यह है कि कश्मीरीगंज लकड़ी के खिलौने बनाने का प्रमुख केंद्र माना जाता है लकड़ी के खिलौने बनाने वाली खराब की मशीन नवापुरा जगतगंज बड़ागांव हरहुआ लक्शा दारानगर में भी चलती हैं
लगभग 2000 शिल्पियों द्वारा प्राचीन काल से ही जंगली लकड़ी जिसका नाम कोरिया है अलग-अलग प्रकार के खिलौने तैयार किए जाते हैं जिसमें देवी देवताओं की मूर्तियां हाथों द्वारा बनाए गए औजारों की सहायता से बनाए जाते हैं जिसके कारण इन हैंडीक्राफ्ट खिलौने की अपनी एक अलग पहचान वैश्विक मार्केट में बनी हुई है और बनारस के इस उद्योग को काफी उन्नति मिल रही है|
आखिर होता क्या है जी आई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन)टैग?
ज्योग्राफिकल इंडिकेशन या फिर भौगोलिक संकेतक को भारतीय संसद ने सन 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटक्शन एक्ट के तहत लागू किया था इसके आधार पर भारत के किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है|
ज्योग्राफिकल इंडिकेशन का उपयोग ऐसी वस्तु या उत्पाद के लिए किया जाता है जिसका संबंध किसी विशेष क्षेत्र या शैली से होने के बाद भी पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त हो
जैसे की कोई विशेष वस्तु चावल गेहूं या चाय किसी विशेष जगह पर उगाये जाएं और पूरे विश्व में अपनी इसी विशेषता के कारण जाने जाएं तो यह उसका जी आई टैग कहलाता है जैसे दार्जिलिंग की चाय जो कि भारत का पहला जी आई टैग है, बासमती चावल, बीकानेरी भुजिया जो की विशेष रूप से बीकानेर में बनाई जाती है ठीक इसी प्रकार बनारस में बनने वाले लकड़ी के खिलौनों को भी जी आई टैग मिल चुका है जिसके कारण यह विश्व प्रसिद्ध और सराहनीय हो रहे हैं|
भारत दुनिया में सबसे ज्यादा जीआई टैग रखने वाला देश है लगभग 365 जी आई टैग इस समय भारत के पास है|