1 दिसंबर शुक्रवार 2023 को रिलीज होगी “सैम बहादुर “
vicky kaushal sam bahadur
सैम बहादुर भारत के एक विख्यात मिलिट्री कमांडर “फील्ड मार्शल सैम मानिक्शॉ ” के जीवन पर आधारित मूवी है। इस मूवी में सैम मानिक्शॉ के जीवन कि सच्ची घटनाओं को दिखाया गया है विशेष कर 1971 के इंडिया पाकिस्तान वार में किस प्रकार कमांडर सैम मानेकशॉ की लीडरशिप में इंडिया ने पाकिस्तान से जीत हासिल की थी।
आज इस आर्टिकल में हम कमांडर सैम मानेकशॉ के जीवन पर प्रकाश डालेंगे और विशेष कर उनके जीवन की उन सच्ची घटनाओं पर भी प्रकाश डालेंगे जो इस मूवी में दिखाई गई है।
” सैम मानेकशॉ की सच्ची कहानी “
सैम मानेकशॉ के जीवन की शुरुआत सन 1914 में पंजाब के अमृतसर में एक पारसी परिवार में जन्म लेने से होती है। सैम मानेकशॉ के पिता एक डॉक्टर थे,सैम मानेकशॉ अपने स्कूल की पढ़ाई खत्म करके आगे की पढ़ाई करने के लिए लंदन जाना चाहते थे लेकिन उनके पिता ने यह कह कर मना कर दिया कि अभी तुम्हारी उम्र बहुत कम है और तुम्हारे दो भाई पहले से लंदन में पढ़ रहे हैं जिनका खर्च मुझे उठाना पड़ता है। इसलिए अभी तुम पढ़ने के लिए लंदन नहीं जा सकते। इस बात से सैम मानेकशॉ बहुत हताश हुए लेकिन कुछ कर भी नहीं सकते थे तो अमृतसर के ही एक कॉलेज में एडमिशन ले लिया और वह समय भारत में अंग्रेजों के राज्य का था।
1931 में भारत में इंडियन मिलिट्री कॉलेज कमेटी भारत के सिपाहियों को ऑफिसर की ट्रेनिंग देने के लिए बनाई गई, जिसके लिए 18 से 20 साल के नौजवान आवेदन कर सकते थे। और इसके लिए उन्हें एक एंट्रेंस एग्जाम को भी पास करना था। जो पब्लिक कमिशन के द्वारा करवाया जाना था।
जब 1932 में इस अकादमी में एडमिशन के लिए न्यूज़पेपर में एंट्रेंस एग्जाम का ऐड आया। तो सैम मानेकशॉ ने तुरंत अप्लाई कर दिया क्योंकि वे अपने पिता से बहुत नाराज थे।
सैम मानेकशॉ ने एंट्रेंस एग्जाम दिया और जब एग्जाम का रिजल्ट आया तो उसमें 15 लोग सेलेक्ट हुए थे। जिसमें सैम मानेकशॉ का भी नाम था। और अब यह 15 लोग इंडियन मिलिट्री कॉलेज कमेटी में ट्रेनिंग के लिए भेज दिए गए, क्योंकि उस समय भारत और भारत के आसपास के देशों पर ब्रिटिश सरकार का राज था तो पाकिस्तान और बर्मा के भी क्रेडेट्स ट्रेनिंग के लिए आए और आगे जाकर वे भी अपने-अपने देश की मिलिट्री के कमांडर बने। और उस समय एक ऐसा रूल बना हुआ था जो भी इंडियन ग्रेजुएट होकर ऑफिसर्स बनेंगे उन्हें पहले ब्रिटिश यूनिट के साथ जोड़ा जायेगा, जिस वजह से मानेकशॉ सेकेंड बटालियन रॉयल स्कॉट में भेजा गया जो उस समय लाहौर में थी।
सन 1942 में जापानियों के द्वारा” पगोड़ा हिल ” पर कब्जा कर लिया गया था। जिसे फिर से अपने कब्जे में लेने के लिए मानेकशॉ अपनी एक छोटी सी टुकड़ी लेकर पगोड़ा हिल पर जाते हैं। और जापानियों का कब्जा हटाकर अपना कब्जा कर लेते हैं। लेकिन इस लड़ाई में उन्हें गोली लग गई थी, और उनकी लड़ाई को एक ब्रिटिश जनरल देख रहे थे। जो रैंक में उनसे बहुत सीनियर थे मानेकशॉ के पास गया और अपना मिलिट्री क्रॉस बैच जो कि कुछ गिने चुने बहादुर सिपाहियों को ही दिए जाते हैं। निकालकर उनको दिया और कहा यह बैच सिर्फ जिंदा सिपाहियों को दिया जाता है। इस प्रकार ब्रिटिश जनरल मानेकशॉ का मनोबल बढ़ा रहे थे। और फिर उनके एक साथी मानेकशॉ को लाध कर बहुत दूर अस्पताल में इलाज के लिए ले जाते हैं और इस प्रकार उनकी जान बचा ली जाती है।
सन 1947 जब भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ था और उस समय मानेकशॉ 12 frontier force regiment में थे और यह रेजीमेंट पाकिस्तान की आर्मी को मिल गया था यही कारण था कि मानेकशॉ को 8th गोरखा राइफल्स के साथ ट्रांसफर कर दिया गया था।
सन 1970 ज़ब पाकिस्तान दो भागों में था ईस्ट ओर वेस्ट पाकिस्तान ईस्ट पाकिस्तान जो आज बांग्लादेश बन चुका है और वेस्ट पाकिस्तान जो आज भी पाकिस्तान में ही है। ईस्ट पाकिस्तान के लोग अपना अलग राज्य बनाना चाहते थे।
जब ईस्ट पाकिस्तान की जनता अपना अलग राज्य बनाना चाहती थी लेकिन वेस्ट पाकिस्तान इसके खिलाफ था। तो भारत देश जिसकी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। वह चाहती थी की ईस्ट पाकिस्तान पर वार किया जाए। जिसके लिए उन्होंने मानेकशॉ को चुना लेकिन उसे समय की परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुए मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी को वार न करने की सलाह दी। जिसके चलते इंदिरा गांधी ने मानेकशॉ को युद्ध की पूरी जिम्मेदारी दी कि तुम अनुकूल परिस्थितियों के अनुसार युद्ध कर सकते हो लेकिन हमें हर हाल में जीत चाहिए।
” सैम बहादुर ” मूवी में 1971 कि इस लड़ाई को ही दिखाया गया है जीस युद्ध में मानेकशॉ का मुख्य रोल रहा है। जिसके लिए उन्होंने ईस्ट पाकिस्तान के एक मुक्ति वाहिनी नाम के ग्रुप को ट्रेन करना शुरू किया जो उस समय पाकिस्तान की आर्मी के खिलाफ था। इस मुक्ति वाहिनी ग्रुप को मानेकशॉ ने इस तरह से तैयार किया कि जब इंडियन पाकिस्तान पर हमला करेंगे तो तुम अंदर ही अंदर पाकिस्तानियों की सप्लाई को तोड़कर इनकी फोर्स को कमजोर करते रहना।
इस बात को पाकिस्तान भी जानता था की ईस्ट पाकिस्तान के अलग होने में इंडिया उनकी मदद जरूर करेगा जिसके चलते 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने वेस्ट इंडिया पर हमला किया जिसे इतिहास में राजस्थान के ” बैटल ऑफ लॉन्गे “के नाम से जाना जाता है जिस पर बॉलीवुड में सुपरहिट मूवी “बॉर्डर “बनी है।
मानेकशॉ ने ईस्ट पाकिस्तान पर हमला करने के लिए थ्री प्रॉन्गड स्ट्रेटेजी बनाई और पाकिस्तान पर तीनों ओर से हमला किया जिसमें इंडिया को जीत हासिल हुई और बांग्लादेश का जन्म हुआ जिसके लिए पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान यासिर ने सरेंडर ऑफ़ इंस्ट्रूमेंट पर साइन करके सुलह को मंजूरी दी। पाकिस्तान की इस लड़ाई ने खत्म होने में कुल 12 दिन लिए जिसमें 94 हजार पाकिस्तान प्रिजनर्स बने और 6000 पाकिस्तान कैजुअल्टीज हुए।
जिसके बाद इंदिरा गांधी जी के प्रस्ताव पर मानेकशॉ को फील्ड मार्शल की उपाधि दी गई और चार दशकों तक लगातार देश की सेवा करने के बाद 15 जनवरी सन 1973 में फील्ड जनरल सैम मानिक्शॉ का निधन हो गया।
सैम बहादुर मूवी सैम मानेकशॉ के जीवन पर आधारित एक बहुत अच्छी कहानी है जिसे आपको भारत का इतिहास जानने के लिए और विकी कौशल के अच्छे अभिनय को इंजॉय करने के लिए जरूर देखनी चाहिए।
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